शीर्षक- आखिर वो मेरी पत्नी है।

अजय एहसास
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वो विरह वेदना सहती है, फिर भी न वो कुछ कहती है
चाहें दिल में हो दर्द भरा, पर सदा प्रेम में बहती है
वो सहनशील भी कितनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।

जब भी बीमार मैं हो जाता, दादी के नुस्खे बतलाये
दो और दो चार नही जोड़े, परिवार जोड़ना सिखलाये
वो पढ़ी लिखी ही कितनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।

वो समझदार है कम ही सही,पर जोर चले न ठगिनी के
वो चूल्हा चौका सब करती, पांवो में निशां हैं अग्नी के
वो आग मे तपती कितनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।

सब मुसीबतों से बचने को, पाई से पाई जोड़़ दिया
जब जब मुसीबतें आयी है,सब शौक ही अपना छोड़ दिया
वो शौक छोड़ती अपनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।

मैं शाम को जब भी घर जाता, वो दौड़ी दौड़ी आती है
कुछ खाये पीये नही आप, वो तुरत नाश्ता लाती है
वो प्यार लुटाती कितनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।

सुख दुख में कैसे चलते है, मुझको बतलाती रहती है
वो पढ़ी लिखी तो नही बहुत, मुझको समझाती रहती है
फिर भी अनुभवी वो कितनी है, आखिर वो मेरी पत्नी है।

मुझे विदा करने को सुबह, दीवारों से वो लिपट जाती
जैसे ही शाम को मैं आता ,वो आकर मुझमें सिमट जाती
बेचैन वो रहती कितनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।

हाथों मे उठा सामानों को ,वो उनकी तौल बताती है
उसने न गणित में वृत्त पढ़ा,पर रोटी गोल बनाती है
वो कलाकार भी कितनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।

रखती है करवा चौथ का व्रत, बिन दाना पानी जीती है
शाम को मेरा दर्शन कर, मेरे हाथ से पानी पीती है।
तप त्याग भी उसमें कितनी है, आखिर वो मेरी पत्नी है।

ईश्वर से दुआ मैं करता हूं ,वो हरदम मेरे साथ रहे
और अच्छेे सच्चे मित्रों सा,हाथों में उसके हाथ रहे
बस मेरी दुआएं इतनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।।

कविता – अजय एहसास

सुलेमपुर परसावां
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)

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युवा कवि और लेखक, अजय एहसास उत्तर प्रदेश राज्य के अम्बेडकर नगर जिले के ग्रामीण क्षेत्र सलेमपुर से संबंधित हैं। यहाँ एक छोटे से गांव में इनका जन्म हुआ, इनकी इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा इनके गृह जनपद के विद्यालयों में हुई तत्पश्चात् साकेत महाविद्यालय अयोध्या फैजाबाद से इन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बचपन से साहित्य में रुचि रखने के कारण स्नातक की पढ़ाई के बाद इन्होंने ढेर सारी साहित्यिक रचनाएँ की जो तमाम पत्र पत्रिकाओं और बेब पोर्टलो पर प्रकाशित हुई। इनकी रचनाएँ बहुत ही सरल और साहित्यिक होती है। इनकी रचनाएँ श्रृंगार, करुण, वीर रस से ओतप्रोत होने के साथ ही प्रेरणादायी एवं सामाजिक सरोकार रखने वाली भी होती है। रचनाओं में हिन्दी और उर्दू भाषा के मिले जुले शब्दों का प्रयोग करते हैं।‘एहसास’ उपनाम से रचना करते है।
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