अम्बेडकरनगर कभी था बसपा की राजनीति का केंद्र, अब गढ़ बचाने की चुनौती

shabdrang
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अंबेडकरनगर, 13 फरवरी । शब्दरंग न्यूज़ डेस्क

Ambedkarnagar was once the center of BSP politics : पूर्वांचल में बसपा का गढ़ माना जाने वाले जिले में पार्टी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। बसपा प्रमुख ने अकबरपुर में पार्टी के पूूर्वांचल क्षेत्रीय कार्यालय का निर्माण भी कराया था। पूर्वांचल के जनपदों की बैठकें यहीं होती थीं। 1993 में सभी पांचों सीटों पर विजय हासिल करने के बाद 1995 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने अंबेडकरनगर नाम से नया जनपद बना दिया। बसपा प्रमुख तीन बार यहां से सांसद चुनी गईं। अब बसपा के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती है। इस बार तमाम दिग्गज या तो पार्टी छोड़ गये या फिर निकाल दिए गये।

बसपा ने वर्ष 1989 के विधानसभा चुनाव से उपस्थिति का एहसास कराना शुरू किया था। तब जलालपुर सीट से बसपा के टिकट पर रामलखन वर्मा विधायक बने थे। दबदबा 1993 में देखने को मिला जब सभी पाचों सीटों पर पार्टी को जीत हासिल हुई। जलालपुर से रामलखन वर्मा के अलावा अकबरपुर से रामअचल राजभर, कटेहरी से रामदेव वर्मा, टांडा से मसूद अहमद व जहांगीरगंज से घामू राम भाष्कर विधायक बने थे।

बसपा के वर्चस्व को देखते हुए ही 29 सितंबर 1995 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने सभी पांच सीटों को शामिल कर अंबेडकरनगर नाम से नया जनपद बना दिया। उस समय बसपा की राजनीति का यही केंद्र था। वर्ष 1996 लोकसभा के चुनाव में अकबरपुर सुरक्षित सीट पर बसपा को पहली बार घनश्याम चंद्र खरवार और बाद में बसपा प्रमुुख मायावती यहां से लोकसभा व जहांगीरगंज सीट से विधानसभा चुनाव में विजयी हुईं। बसपा ने 2002 में जिले की पांच में से चार सीटों पर सफलता पाई। 2007 में सभी पांच सीटों पर कब्जा जमा लिया। बीते विधानसभा चुनाव में भी तीन सीट पर जीत मिली थी, लेकिन उसके बाद से बसपा के तमाम बड़े नेताओं ने या तो पार्टी छोड़ दी या दूसरे दल में शामिल हो गये।

बसपा के संस्थापक नेताओं में शामिल आलापुर के त्रिभुवनदत्त, अकबरपुर के रामअचल राजभर, कटेहरी के लालजी वर्मा के अलावा जलालपुर के राकेेश पांडेय अब सपा के साथ हैं। ऐसे में अब बसपा के सामने गढ़ को बचाए रखने की चुनौती है। बीते जिपं अध्यक्ष व ब्लाक प्रमुख चुनाव में प्रत्याशी तक न खड़ा कर पाने के चलते कड़ी आलोचना झेल चुकी बसपा के सामने विधानसभा चुनाव में मजबूत प्रत्याशी खोजने की चुनौती आ गई थी। हालांकि पाला बदल के चलते अब बसपा भी सभी पांच सीटों पर चुनौती देने की स्थिति में है।

अंबेडकरनगर पार्टी के लिए कितना महत्व रखता है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मायावती ने 1998 में यहां से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 2002 में उन्होंने जहांगीरगंज से चुनाव लड़ा था। मायावती ने 2004 में एक बार फिर से अकबरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और विजई रहीं।

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