देश में बाल विवाह के खिलाफ कानून बने हैं और समय के अनुसार उसमें लगातार संशोधन कर उसे ओर प्रभावशाली बनाया गया है फिर भी बाल विवाह लगातार हो रहे हैं। अगर सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अन्त नही हो पा रहा है, तो इस असफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि बाल विवाह एक सामाजिक समस्या है और इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही सम्भव हो सकेगा। केवल कानून बनाने से यह कुरीति खत्म नहीं होने वाली है।
बाल विवाह मनुष्य जाति के लिए एक अभिशाप है जो आज भी दुनिया के कई कोनों में फल-फूल रहा है। यह जीवन का एक कड़वा सच है कि आज भी छोटे-छोटे बच्चे इस प्रथा की भेंट चढ़े जा रहे हैं। भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में बच्चे बाल-विवाह के बंधन में बांध दिए जाते हैं। भारत में यह प्रथा लम्बे समय से चली आ रही है जिसके तहत छोटे बच्चों का विवाह कर दिया जाता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि आज के पढ़े लिखे समाज में भी यह प्रथा अपना स्थान बनाए हुए है। जो बच्चे अभी खुद को भी अच्छे से नहीं समझते, जिन्हें जिन्दगी की कड़वी सच्चाईयों का कोई ज्ञान नहीं, जिनकी उम्र अभी पढ़ने लिखने की होती है उन्हें बाल विवाह के बंधन में बांधकर क्यों उनका जीवन बर्बाद कर दिया जाता है।
तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अन्त नहीं हो पा रहा है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में 47 फीसदी बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 22 फीसदी बालिकाएं 18 वर्ष से पहले ही मां बन जाती हैं। यह रिपोर्ट हमारे सामाजिक जीवन के उस स्याह पहलू की ओर इशारा करती है, जिसे अक्सर हम रीति-रिवाज व परम्परा के नाम पर अनदेखा करते हैं। तीव्र आर्थिक विकास, बढ़ती जागरूकता और शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद भी अगर यह हाल है, तो जाहिर है कि बालिकाओं के अधिकारों और कल्याण की दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना शेष है। कैसी बिडम्बना है कि जिस देश में महिलाएं राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन हुयी हों वहां बाल विवाह जैसी कुप्रथा के चलते बालिकाएं अपने अधिकारों से वंचित कर दी जाती हैं। बाल विवाह न केवल बालिकाओं की सेहत के लिहाज से बल्कि उनके व्यक्तिगत विकास के लिहाज से भी खतरनाक है।
भारत में बेटी-बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान के शुरू होने के बावजूद हर सात सेकेंड में एक नाबालिग बेटी की अपने से दोगुने उम्र के व्यक्ति के साथ जबर्दस्ती शादी करा दी जा रही है। बच्चों के अधिकारों पर काम करने वाली अंतरर्राष्ट्रीय संस्था सेव चिल्ड्रन ने अपने ताजा रिपोर्ट में खुलासा किया है कि भारत में बाल विवाह अभी भी एक बड़ी चुनौतियों में से एक बना हुआ है। हाल ही में जारी एवरी लास्ट गर्ल नामक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बाल विवाह में कमी जरूर आई है लेकिन आज भी देश में प्रति सात सेकेंड में 18 साल से कम उम्र की किशोरी की जबरन शादी हो जाती है। बाल विवाह सबसे ज्यादा संख्या के मामलों में अफगानिस्तान, यमन और सोमालिया के साथ भारत भी शामिल है। 2001 में हुई जनगणना के अनुसार देश में 18 वर्ष से कम आयु की 43.5 फीसदी किशोरियां शादीशुदा थीं। 2011 में जारी जनगणना में सामने आया है कि फिलहाल लगभग 30.2 प्रतिशत किशोरियां शादी कर चुकी हैं। कुल मिलाकर भारत 18 साल के कम उम्र की लगभग 10.30 करोड़ किशोरियों के गले में मंगलसूत्र है। जबकि संयुक्त राष्ट्र की ओर से तैयार सस्टेनेबल डेवलेपमेंट गोल (एसडीजी) के अनुसार 2030 तक भारत समेत पूरे विश्व में बाल विवाह को खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है।
भारत में बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई को खत्म करने में खास समस्याएं रही हैं। मसलन 14 साल से कम उम्र की बच्चियों में बाल विवाह की दर कम है, लेकिन 15-18 साल तक की किशोरियों को शादी के बंधन में जबरन जोड़ दिया जाता है। इसी तरह देश में राजस्थान, पश्चिम बंगाल और आंध्र-प्रदेश में बाल विवाह की दर अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा है। कम उम्र में शादी के बाद जल्दी गर्भवती होने से महिला और बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इस खास वर्ग में ही शादी के बाद एड्स जैसी बिमारी के संक्रमण का खतरा भी सबसे ज्यादा होता है। पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों के लोग अपनी लड़कियों कि शादी कम उम्र में सिर्फ इसलिए कर देते हैं कि उनके ससुराल चले जाने से दो जून की रोटी ही बचेगी। वहीं कुछ लोग अंध विश्वास के चलते अपनी लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर रहे हैं। जो भी हो इस कुप्रथा का अंत होना बहुत जरूरी है। सिर्फ कानून के भरोसे बाल विवाह जैसी कुप्रथा को नहीं रोका जा सकता है। बाल विवाह एक सामाजिक समस्या है। अत: इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही सम्भव है, इसलिये समाज को आगे आना होगा तथा बालिका शिक्षा को और बढ़ावा देना होगा। संयुक्त राष्ट्र ने माना है कि आज पूरी दुनिया में लगाम नहीं कसी गई तो मौजूदा 70 करोड़ बाल विवाह के मामलों की संख्या 2030 तक बढक़र 95 करोड़ हो जाएगी।
मार्च 2015 में जारी भारत की जनगणना-2011 के कुछ खास आंकड़े बताते हैं कि इस समय देश में 1.21 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनका बाल विवाह हुआ है। यह संख्या देश के कुल आयकरदाताओं की एक तिहाई है। बाल-विवाह के सर्वाधिक मामलों वाले राज्य क्रमश: उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और गुजरात हैं। लड़कियों की तुलना में लड़के बाल विवाह के ज्यादा शिकार हो रहे हैं। बाल विवाह के भुक्तभोगियों में 57 फीसदी पुरुष और 43 फीसदी महिलाएं हैं। ये आंकड़े इतना बताने के लिए काफी हैं कि भले ही भारत ने पोलियो, चेचक और कुष्ठ जैसे घातक रोगों पर जीत हासिल कर ली हो लेकिन, राजा राममोहन राय की ओर से शुरू हुए संघर्ष के पौने दो सौ साल बीतने के बाद भी बाल विवाह की बीमारी हमारे सामने खड़ी है।
जनगणना में बाल विवाह के 1.21 करोड़ मामले दिख रहे हैं, जबकि पुलिस के पास मुश्किल से साल में कुछ सौ मामले ही दर्ज होते हैं। यानी 99 फीसदी से ज्यादा बाल-विवाह गुप-चुप तरीके से हो रहे हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस सम्बध में फरवरी 2013 में बनाई राष्ट्रीय नीति में माना कि पिछले 15 साल में बाल विवाह के मामलों में 11 फीसदी की कमी आई। इस रफ्तार से बाल विवाह खत्म करने में 50 साल और लग जाएंगे।
संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया का ऐसा तीसरा देश है, जहां बाल विवाह का प्रचलन सबसे ज्यादा है। भारत में 20 से 49 साल की उम्र की करीब 27 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं जिनकी शादी 15 से 18 साल की उम्र के बीच हुई है। जुलाई 2014 में यूनिसेफ द्वारा ‘एंडिग चाइल्ड मैरिज: प्रोग्रेस एंड प्रास्पेक्ट्स’ शीर्षक से बाल-विवाह से संबंधित एक रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 720 मिलियन महिलाएं ऐसी हैं, जिनकी शादी 18 साल या इससे कम उम्र में हो गई है। विश्व की कुल बालिका बधु की एक तिहाई बालिका बधू भारत में पाई जाती है अर्थात प्रत्येक 3 में से 1 बालिका बधू भारतीय है।
बाल विवाह की कुरीति को रोकने के लिए 1928 में शारदा एक्ट बनाया गया था। इस एक्ट के मुताबिक नाबालिग लड़के और लड़कियों का विवाह करने पर जुर्माना और कैद हो सकती थी। आजादी के बाद से लेकर आजतक इस एक्ट में कई संशोधन किए गए है। सन् 1978 में इसमें संशोधन कर लड़की की उम्र शादी के वक्त 15 से बढ़ाकर 18 साल और लड़के की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल कर दी गई थी। बाल ‘विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006’ की धारा 9 एवं 10 के तहत् बाल विवाह के आयोजन पर दो वर्ष तक का कठोर कारावास एवं एक लाख रूपए जुर्माना या दोनों से दंडित करने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा बाल विवाह कराने वाले अभिभावक, रिश्तेदार, विवाह कराने वाला पंडित, काजी को भी तीन महीने तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। अगर बाल विवाह हो जाता है तब किसी भी बालक या बालिका की अनिच्छा होने पर उसे न्यायालय द्वारा वयस्क होने के दो साल के अंदर अवैध घोषित करवाया जा सकता है।
देश में बाल विवाह के खिलाफ कानून बने हैं और समय के अनुसार उसमें लगातार संशोधन कर उसे ओर प्रभावशाली बनाया गया है फिर भी बाल विवाह लगातार हो रहे हैं। अगर सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अन्त नही हो पा रहा है, तो इस असफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि बाल विवाह एक सामाजिक समस्या है और इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही सम्भव हो सकेगा। केवल कानून बनाने से यह कुरीति खत्म नहीं होने वाली है।
अगर इस कुप्रथा को जड़ से खत्म करना है तो इसके लिए समाज को ही आगे आना होगा तथा बालिकाओं के पोषण, स्वास्थ्य, सुरक्षा और शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करना होगा। समाज में शिक्षा को बढ़ावा देना होगा। अभिभावकों को बाल विवाह के दुष्परिणामों के प्रति जागरुक करना होगा। सरकार को भी बाल विवाह की रोकथाम के लिये बने कानून का जोरदार ढंग से प्रचार-प्रसार तथा कानून का कड़ाई से पालन करना होगा। बाल विवाह प्रथा के खिलाफ समाज में जोरदार अभियान चलाना होगा। साथ ही साथ सरकार को विभिन्न रोजगार के कार्यक्रम भी चलाना होगा ताकि गरीब परिवार गरीबी की जकड़ से मुक्त हो सकें और इन परिवारों की बच्चियां बाल विवाह का निशाना न बन पाएं।