बिटिया

bitiya-sarasawati-ramesh
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बाबुल की मुंडेर पर
चिड़ियों की तरह
दिन रात फुदकने वाली बिटिया
जब ब्याह दी जाती है परदेस
तब अपने ससुराल के झरोखे से
ताकती रहती है
बाबुल की राह
अभी अम्मा रसोई घर से निकलेगी
उनके लिए लेकर दाना पानी
पुकारेगी-मेरी गुड़िया रानी
और वे चहक कर
पकड़ लेंगी थाली
अभी पापा पुकारेंगे तौलिए के लिए
और बिटिया को न पाकर
हो जाएंगे उदास
अम्मा कहेगी-
बिटिया को क्यों दूर ब्याह दिया
पापा कहेंगे- हाँ बहुत दूर ब्याही गई
और दोनों अपने अपने कोनों में जाकर
रो लेंगे चुपचाप
अम्मा बिटिया के छोड़े हुए कपड़ों में
मुँह दबा सिसकेगी
पापा सूने आंगन को देख तड़पेंगे
जग की रीत को देंगे उलाहना
कोसेंगे बेटियो की तकदीर को
लेकिन अगर कभी
किसी कारण वश
मुसीबत में पड़ जाए बेटी
और लौट आये बाबुल के घर
मांगने लगे रहने का ठौर
तब जाने क्यों यही बाबुल
कठोर हो लिख देते हैं
बेटियों को वनवास

कवयित्री-सरस्वती रमेश