शीर्षक- पर्यावरण बचाई

अजय एहसास
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मास्क लगावै के नउबत
ना आई हमरे भाई
आवा हम सब मिलिकै
आपन पर्यावरण बचाई।

फल फूलन से लदा रही
ना रहिहै केहू भूखा
ऑक्सीजन नाही कम होई
पड़ी न कबहूं सूखा
पेड़ लगाइ के आवा
आपन धरती स्वर्ग बनाई
आवा हम सब मिलिकै
आपन पर्यावरण बचाई।

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तोता, बयां, गौरैया,
कोयल कै गुजिहैं किलकारी
जब दुअरा पेड़े पै बइठिहैं
तब लागी मनोहारी
कुलि चिरइन कै रैन बसेरा
आवा मिलिकै बनाई
आवा हम सब मिलिकै
आपन पर्यावरण बचाई ।

गांवन मा यको ताल न रहिगा
कुंइया सगरो पटिगै
कबहूं कबहूं सूखा होइगै
बरसातौ अब घटिगै
बरखा कै पानी कै आवा
मिलिकै इकट्ठा कराई
आवा हम सब मिलिकै
आपन पर्यावरण बचाई।

नदी कै पानी पीयैं पुरखा
सब ग्रंथन मा देखौ
नदिया के पानी मा नाही
मरा जानवर फेंकौ
नदियां मा ना कपड़ा धोई
ना गोरुन का नहवाई
आवा हम सब मिलिकै
आपन पर्यावरण बचाई ।

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माटी से जिनगी बा सबकै
पेड़ हो चाहे मनई
माटी में ही होवै अन्न
हो सब्जी चाहे सनई
खरपतवार कीटनाशी का
माटी में न मिलाई
आवा हम सब मिलिकै
आपन पर्यावरण बचाई।

चिमनी कै धूआं
कम कइ दा ए०सी० वाली गाड़ी
जरै से पन्नी और पराली
जहर हवा मा बाढ़ी
दूषित हवा मा ना जी पइहै
शुद्ध रहन दयो भाई
आवा हम सब मिलिकै
आपन पर्यावरण बचाई ।

करखाने का आबादी से
बहुतै दूरि लगावौ
गाड़ी कै हारन अउ बाजा
नाही तेज बजावो
ब्याहौ मा डीजे बाजा
ना बहुतै तेज बजाई
आवा हम सब मिलिकै
आपन पर्यावरण बचाई।

रखौ तुरत कूड़ेदानन मा
कचरा जहां पै देखौ
सब्जी कै छिलका अउ जूठन
इहां उहां ना फेकौ
खाद बनाई कै छिलका
जूठन का उपयोगी बनाई
आवा हम सब मिलिकै
आपन पर्यावरण बचाई।

साफ सफाई कइकै
मिलिकै रोग कै दूरि भगाई
“पर्यावरण बचाओ” भाव के
जन-जन तक पहुंचाई
स्वच्छ रही जब देश
विदेशौ तब एकर गुन गाई
आवा हम सब मिलिकै
आपन पर्यावरण बचाई।

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युवा कवि और लेखक, अजय एहसास उत्तर प्रदेश राज्य के अम्बेडकर नगर जिले के ग्रामीण क्षेत्र सलेमपुर से संबंधित हैं। यहाँ एक छोटे से गांव में इनका जन्म हुआ, इनकी इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा इनके गृह जनपद के विद्यालयों में हुई तत्पश्चात् साकेत महाविद्यालय अयोध्या फैजाबाद से इन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बचपन से साहित्य में रुचि रखने के कारण स्नातक की पढ़ाई के बाद इन्होंने ढेर सारी साहित्यिक रचनाएँ की जो तमाम पत्र पत्रिकाओं और बेब पोर्टलो पर प्रकाशित हुई। इनकी रचनाएँ बहुत ही सरल और साहित्यिक होती है। इनकी रचनाएँ श्रृंगार, करुण, वीर रस से ओतप्रोत होने के साथ ही प्रेरणादायी एवं सामाजिक सरोकार रखने वाली भी होती है। रचनाओं में हिन्दी और उर्दू भाषा के मिले जुले शब्दों का प्रयोग करते हैं।‘एहसास’ उपनाम से रचना करते है।
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