कविता : स्वालंबन की खोज

shabdrang
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कोलकाता रेप-मर्डर केस पर कवयित्री ने अपनी भावनाओं को वीभत्स के रूप में नीचे दिए कुछ पंक्तियों में पिरोया है….

तुम कहती हो माँ मैं लड़की हूँ,
ऐसे रही वैसे रहो, कुछ काम करो,
जग में नाम करो,
माँ युग बीता सोच बीती
मैं तेरे बनाये रास्ते पर,
स्वालंबन का पाठ पढ़ी,
शिशु से बाल्य और बाल्य से युवा हो गई माँ,
आज तेरी बताई बातों को सोचती हूँ,
समाज को देखती हूँ, छल को सहती हूँ,
स्पर्श को महसूस करती हूँ।

माँ में लड़की हूँ!
माँ तूने मुझे योग्य बनाया
कोमल से उठोर बनाया तो भी क्यों?
आज माँ मेरे दुकड़े हो गये?
क्यों माँ ? मानव पशु ने मुझे –
खाया, चबाया और नोंच दिया
माँ मैं लड़की हूँ?

जानती हो माँ मानव नोचता रहा,
मै संघर्ष करती रही
वह मानव दो-तीन थे,
मैं अकेले लड़ती रहीं,
माँ मैं जीवन के अंत तक हार नहीं मानी
“माँ” मैं अस्तित्व की खोज में
खुद को मिटा बैठी
“माँ” तू हारना मत,
अंत तक लड़ाई जारी रखवा
“माँ”, मैं एक स्वालम्बी लड़की हूँ।

archana mishra

कवयित्री  : अर्चना मिश्रा ( शिक्षिका, श्री गणेश सीनियर सेकेंडरी स्कूल सीधी (म.प्र.) )

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