कविता : वो बैठे फेसबुक खोले

Poetry He opened Facebook sitting

नभ चाहें धरती डोले, वो बैठें फेसबुक खोले
उंगली करें होले होले,वो बैठें फेसबुक खोले!

दुनिया भर के दोस्त बना दे, ये इण्टरनेट साइट,
गीदड़ भी है यहाँ गरजते होकर इकदम टाइट।
हैलो हाय बोलते रहते, हाउ आर यू कहते ,
सुन्दरियों को देख एक पे सौ रिकवेस्ट हैं करते।
हो स्वीकार थैंक्स बोले, वो बैठें फेसबुक खोले।

उनकी एक पोस्ट आये तो मिले हज़ारों लाइक,
हमको तो लाइक करके भी कर देते अनलाइक।
लोमड़ सी तस्वीर है उनकी , फिर भी कहते नाइस
बोलें आओ हम तुम मिलकर बैठें पीयें स्लाइस।
चाहे हो शरबत घोलें, वो बैठें फेसबुक खोले।

अपने बारे मे लिखतें हैं आइ एम एलोन,
सूटों वाली फोटो लगाते चाहें हो लाखों का लोन।
प्रोफाइल मे लगा दिये हैं जाब मेरी सरकारी ,
खेती करते घर पर बैठें या बेचें तरकारी ।
घर चाहें आलू छीलें,वो बैठें फेसबुक खोले।

बूढ़े भी हैं लिखते आजकल आइ एम स्टूडेन्ट,
सोच रहें हैं इसी उमर में हो लव एक्सीडेन्ट।
दाँत दिखे न स्माइल में खाली दिखे मसूड़ा,
फिर भी चाह रहें हैं उनके बाल में बाधें जूड़ा।
दाँत नहीं जब मुँह खोले,वो बैठें फेसबुक खोले।

लडका बोले सिवा तुम्हारे नहीं है कोई खास,
जान गई बस मुझ पर निर्भर न डाले वो घास।
कभी जो उनका मैसेज आये हाय हैलो हो कैसे ,
भैंस से जैसे जोंक चिपकता वो चिपके हैं ऐसे ।
खाते दिनभर हिचकोले,वो बैठें फेसबुक खोले।

सब लेखक बन जाते जिनको है न कोई काम,
दिन भर डोले उस साइट पर जहाँ लगा है जाम।
कभी-कभी तो भाग दौड़ में वो लंगड़े हो जाते,
पाले जब अच्छे मोटे तगड़े के वो पड़ जाते।
गिरते जब उसके शोले,वो बैठें फेसबुक खोले।

चिट्ठी वाली बातें जब भी याद हमे आ जाये,
बन्द करें पलकें झर झर झर आँसू बहता जाये।
आज हो रही विडियो कालिंग सब हो गया खिलौना ,
प्रेम हो गया दूषित अब करते दुष्कृत्य घिनौना।
लोग बदलते अब चोले,वो बैठें फेसबुक खोले।

अपनों का अपमान विदेशी का करते सम्मान ,
कहते हम सब बना रहें हैं भारत देश महान।
लज्जा हया शर्म सब छोड़े वेश का किया विनाश ,
कहते हैं हो रहा है अपने देश का पूर्ण विकास।
बेशर्मी के खोले झोलें, वो बैठें फेसबुक खोले!!