20 मार्च विश्व गौरैया दिवस पर विशेष कविता
मुंडेर पर बैठी गौरैया
अनजान होती है
मनुष्य की तमाम चालबाजियों से
अनजान होती है
परमाणु बमों से
धरती पर बरस रहे गोले बारूदों से
और मनुष्य की उन महत्वाकांक्षाओं से
जिसकी भेंट चढ़ रहे हैं
बड़े-बड़े जानवर
पक्षी, जलचर और समुद्री जीव
वह तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी
चल पड़ती है
तिनके की तलाश में
घोसला बनाने के लिए
उसे देने हैं अंडे
सेने हैं बच्चे
और चुगाने हैं दाने
उसके बहुत सारे अंडे
समय से पहले फूट कर नष्ट हो जाते हैं पर
वह नहीं जानती ग्लोबल वार्मिंग से बचने के तरीके
और अपने अंडों की मृत्यु को
प्रकृति की इच्छा मानती हैं।
क्योंकि
जलवायु परिवर्तन के लिए
उसकी चोंच और पंजे
बहुत हैं छोटे
और मनुष्य के हाथों की उंगलियाँ बहुत बड़ी
ओ मासूम गौरैया!
तुम्हारे नन्हे पंजों की असल लड़ाई
मनुष्य के हाथ की उंगलियों से है।
—सरस्वती रमेश