प्रभुनाथ शुक्ल / मौसम आमों का है। आम का नाम आते ही मुँह में पानी आ जाता है। आएगा भी क्यों नहीं, आम की मिठास का स्वाद ही बेमिसाल है। राजनेता, अधिकारी, दरबारी, संतरी, अमीर, गरीब यानी आम से लेकर खास तक की पसंद आम है। हर कोई आम खाना और खिलाना चाहता है। आपने भी आम खाया होगा।आम खाना या चूसना भी एक खास कला है, लेकिन, आम आप कैसे खाते हैं। आपके आम खाने का तरिका क्या है। आप आम छील कर और बाद में उसे काट कर खाते हैं या निचोड़ कर उसका पना लेते हैं। उसकी आइसक्रीम, मिल्कशेक या फिर दूसरे तरीके से उपयोग करते यह आपका अपना तरीका है।
हमारे पूर्वांचल में आम को खाया नहीं चाटा या चूसा जाता है। उसे गाँव की भाषा में हम ‘कोपर चाटना’ बोलते हैं। देशी भाषा में हम पके आम को कोपर बोलते हैं। जिसे हमें आम खिलाना होता है उसे हम गाँव की भाषा में कहते हैं का हो ‘कोपर चट बा’ यानी क्या आप आम चूसेंगे। आम का सीजन खत्म होने के बाद भी हमारे गाँव जवार में उस देशज भाषा का उपयोग मजाकिया गाली के रुप में किया जाता है। पूर्वांचल में यह देशी भाषा मजाकिया गाली बन गईं है। जिसका उपयोग लोग दिन रात करते हैं। वैसे सच पूछा जाय तो आम को चाटने में जितना आनंद मिलता है उतना छील या काटकर खाने में नहीं। आम खाने के शौकीन चूस कर खाते हैं। आम चूसने या चाटने के बाद जिस गति को आम प्राप्त होता है, उसकी पीड़ा खुद आम ही जान सकता है। लोग गुठलियों को भी चाट-चाट कर पीले से सफेद कर देते हैं। बेचारा आम खुद को दिखाने लायक नहीं बचता। उसे खुद नहीं पता चलता है कि वह आम है कि खास।
अब आपको मैं क्या बताऊं चूसने के बाद जैसी हालत बेचारे आम की होती है, उससे भी बदतर स्थिति आम आदमी की है। व्यवस्था की चक्की में वह भी चूसा जा रहा है। उसकी भी दशा चूसे आम की तरह है। उसकी हालत कभी सुधरने वाली नहीं है। बेकारी, गरीबी, अशिक्षा और भुखमरी, इनकम टैक्स, सेलटैक्स,, रोड टैक्स, टोल टैक्स और जीएसटी उसे चूस रहे हैं। इसके बाद जाति, धर्म, समुदाय, भाषा के आड़ में उसे चूसा जा रहा है। सरकारी दफ़्तर का बाबू फ़ाइल में गड़बड़ी दिखाकर उसे घूस की आड़ में चूस रहा है। राजनीति और राजनेता उसे वोट बैंक की खातिर चूस रहा है। यहाँ घोषित-अघोषित रुप से हर कोई एक दूसरे को चूस रहा है। इसीलिए हम कहते हैं कि चूसना एक कलाबाजी है।