शीर्षक- आज का रावण।।

अजय एहसास
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दशहरा विजयादशमी पर विशेष कविता

वो त्रेतायुग का था रावण,
भगिनी की लाज का लिया था प्रण
भगिनी की लाज बचाने को,
खोया सम्मान दिलाने को।

वो युद्धभूमि मे अड़ा रहा,
भाई बन्धु को लड़ा रहा
इन्सान आज भगिनी के साथ,
क्या कहूँ बना ये दरिन्दा है
आज भी रावण जिन्दा है,
आज का रावण जिन्दा है।

इन्सान था रावण दैत्य नहीं,
कहने का है औचित्य नहीं
रावण ने मदिरा नहीं पिया,
वह भक्ति योग के साथ जिया
ना भक्ति करें ना योग करें,

बस सुरा सुन्दरी भोग करें
इन्सान आज मदिरा पीकर,
कहता ईश्वर का बन्दा है
आज भी रावण जिन्दा है,
आज का रावण जिन्दा है।

वो रावण नहीं था अभिमानी,
वेदों ग्रन्थों का था ज्ञानी
वो आत्मज्ञान को जानता था,
फिर भी ईश्वर को मानता था

कुछ अक्षर हमने सीख लिये,
करते ईश्वर की निन्दा है
आज भी रावण जिन्दा है,
आज का रावण जिन्दा है।

चाहे जितने पुतले फूँके,
चाहे उसके ऊपर थूके
वो खुद का मान बचाया था,
अपना इतिहास रचाया था,

इन्सान आज धन की खातिर,
खुद अपनी लाज लुटाता है
एहसास’ आज शर्मिंदा है,
तेरे भीतर रावण जिन्दा है
आज भी रावण जिन्दा है,
आज का रावण जिन्दा है।।

-अजय एहसास
सुलेमपुर परसावां
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)

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युवा कवि और लेखक, अजय एहसास उत्तर प्रदेश राज्य के अम्बेडकर नगर जिले के ग्रामीण क्षेत्र सलेमपुर से संबंधित हैं। यहाँ एक छोटे से गांव में इनका जन्म हुआ, इनकी इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा इनके गृह जनपद के विद्यालयों में हुई तत्पश्चात् साकेत महाविद्यालय अयोध्या फैजाबाद से इन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बचपन से साहित्य में रुचि रखने के कारण स्नातक की पढ़ाई के बाद इन्होंने ढेर सारी साहित्यिक रचनाएँ की जो तमाम पत्र पत्रिकाओं और बेब पोर्टलो पर प्रकाशित हुई। इनकी रचनाएँ बहुत ही सरल और साहित्यिक होती है। इनकी रचनाएँ श्रृंगार, करुण, वीर रस से ओतप्रोत होने के साथ ही प्रेरणादायी एवं सामाजिक सरोकार रखने वाली भी होती है। रचनाओं में हिन्दी और उर्दू भाषा के मिले जुले शब्दों का प्रयोग करते हैं।‘एहसास’ उपनाम से रचना करते है।
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