शीर्षक – बहराइच

shabdrang
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देता है आज भी नया पैगाम बहराइच
लगता है आज भी हसीं जवान बहराइच ।
खंडहर में यहां के है अजब खूबसूरती
प्राचीनता की आज भी पहचान बहराइच ।।

जंगल भी समेटे हुए है अपनी बाहों में
जंगल के राजा की दिखे हैं शान बहराइच ।
मंदिर में सुबह शाम गूंजती हैं घंटियां
और मस्जिदों में गूंजती अज़ान बहराइच ।।

हैं लोग दिल के सच्चे ईमान के भी पक्के
दिखता है खूबसूरती की खान बहराइच ।
कोई हो जाती धर्म सभी साथ में चलें
है इसलिए ही खास नहीं आम बहराइच ।।

सड़कें यहां खुशहाल हैं गलियां भी शांत हैं
लगता नहीं दिखे कहीं भी जाम बहराइच ।
हर और है खलिहान खेत प्राकृतिक सौंदर्य
दिखता नहीं कहीं से भी वीरान बहराइच ।।

चोरी ठगी धोखा न गला काटना सीखा
है आज भी दिखे जरा नादान बहराइच ।
कल तक जो हकीकत था वो इतिहास बन गया
पुरखों का समेटे हुए दास्तान बहराइच ।।

सुख दुख में दूसरों की मदद को सदा तैयार
रखता है खुद में ऐसे ही इंसान बहराइच ।
हंस देंगे आप चाहें भी हो कितने दर्द में
रखता है ऐसी प्यार की जुबान बहराइच ।।

रह पाते हैं ना बिन तेरे यूं प्यार हो गया
खुद में समेटती है वो मुस्कान बहराइच ।
महफिल अदब की बोलते मीठी जुबान में
लगती है तानसेन की सी तान बहराइच ।।

कोई छोड़ना न चाहे कोई रहना न चाहे
ऐसे तमाम लोगों का अरमान बहराइच ।
तुझ में है बसी कितनों की ही जान बहराइच
एहसास हो रहा है, है अभिमान बहराइच ।।

– अजय एहसास
सुलेमपुर परसावां
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)

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