शीर्षक: युद्ध

प्रभुनाथ शुक्ल
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फिज़ाओं में घुली है बारूद की गंध
मलबों में चीखती हैं लाशें
खंडहर हो चुके शहर-दर-शहर
रक्त से रंजीत हैं सड़कें …

मासूम आँखों में सवाल है
शांत शहर में क्यों बवाल है
क्यों गरजती हैं तोपें
बरसते हैं क्यों गोले

तुम किसे जीतना चाहते हो
डर को, मृत्यु को या खुद को
जो डरता है वहीं युद्ध लड़ता है
मुझे युद्ध नहीं बुद्ध चाहिए

तुम जीत सकते हो सम्राज्य
तुम जीत सकते हो राज्य
तुम जीत सकते हो शहर
लेकिन नहीं जीत सकते इंसाननियत

प्रभुनाथ शुक्ल

(स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तम्भकार)

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार, कवि और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। आपके लेख देश के विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित होते हैं। हिंदुस्तान, जनसंदेश टाइम्स और स्वतंत्र भारत अख़बार में बतौर ब्यूरो कार्यानुभव।
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