8 मार्च, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष आलेख..
आधुनिक युग में नारी की स्थिति में सुधार हुआ है। हम इसे कतई नकार नहीं सकते हैं, क्योंकि इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी स्त्रियां तमाम बंदिशों से जूझ रही हैं उन्हें सबला बताकर अबला बनाने का बेहतरीन कदम आज भी पुरुष वर्ग द्वारा उठाया जा रहा है। फिल्मकारों, चित्रकारों ने भी इतनी बेहतरीन तरीके से प्रस्तुति दी है कि लोग अब स्त्री को सौंदर्य अनुभूति का साधन समझने लगे हैं हमारे देश में आज भी ऐसी बहुत सी रूढ़िवादी परंपराएं हैं जो किसी ना किसी रूप में स्त्रियों के शोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
आज प्रत्येक क्षेत्र में अपना परचम लहरा कर भले ही स्त्रियों ने सबला होने का प्रमाण दिया हो, परंतु इस पुरुष प्रधान समाज का मानना है कि पुरुष के बिना स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं है। आजकल हमारे समाज में एक बालिका किसी भी क्षेत्र में बालक से अच्छा प्रदर्शन क्यों ना कर ले लेकिन उसके परिवार के ही लोग उसे नजरअंदाज कर देते हैं आज भी हमारे समाज में बहुत से लोग ऐसे हैं जो अपनी लक्ष्मी स्वरूपा पत्नी को प्रताड़ित करते हैं केवल अपनी ही बहन को बहन समझते हैं राह चलते बच्चियों पर तरह-तरह के अशोभनीय एवं असामाजिक शब्द प्रहार करते हैं ऐसे में महिला दिवस मनाना और नारी सशक्तिकरण का उद्देश्य मात्र एक कोरी कल्पना है। आखिर क्या कारण है कि आज लोगों की इतनी दूषित मानसिकता हो चुकी है कि वे सरेआम महिलाओं के सम्मान के साथ खिलवाड़ करते हैं, और तमाम लोग देखकर भी मूकदर्शक बने रहते हैं। लगभग प्रत्येक दिन हमें अखबारों में बच्चियों के साथ होने वाले दुष्कृत्यों की तमाम घटनाएं पढ़ने को मिल जाती हैं। आखिर कब तक ऐसे ही चलता रहेगा कब तक हम मोमबत्ती जलाकर श्रद्धांजलि देते रहेंगे।
हमारे भारतीय सभ्यता का एक बेहद गौरवशाली इतिहास रहा है जिसमें प्राचीन काल से ही अनेक विदुषी कन्याएं हमारे देश की पहचान बनी हैं, और आज भी बन रही हैं । सच तो यह है कि पुरुष ने कभी स्त्री की वास्तविकता का अनुभव ही नहीं किया। उसने तो हमेशा अपने मन में आ रही अनियंत्रित वासना को ही उसकी नींव समझा । आज भी हमारे समाज के विधवा, तलाकशुदा और निसंतान स्त्रियों को बहुत ही हेय दृष्टि से देखा जाता है। जो कि सर्वथा अनुचित है। हम आज इतने स्वार्थी, असभ्य, भावनाविहीन एवं चरित्रहीन हो गए हैं कि महिलाओं के सम्मान और उनके अधिकार पर कुठाराघात करने में बिल्कुल भी नहीं चूकते हैं। हमारे संस्कृति में नवरात्रि के दिनों में कन्या पूजन का विधान है लेकिन कुछ हैवान हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए मासूमों के साथ भी कुकृत्य करने में बिल्कुल भी संकोच नहीं करते हैं। आज स्त्रियों पर बचपन से ही तमाम प्रकार की बंदिशें लगाकर उन्हें कमजोर बनाने की साजिश की जाती है, और यही बंदिशें उनके मन मस्तिष्क में घर बना लेती हैं तथा नारी स्वयं को कमजोर समझने लगती हैं। स्त्री का उत्पीड़न व उसे अपमानित करने वाली कुप्रथाएं भले ही समाप्त हो गई हो किंतु आज भी दूषित मस्तिष्क में नारी शोषण की भावना विद्यमान है । और इसी शोषणवादी मानसिकता के कारण आज स्त्रियां बहुत से स्थानों पर शोषित हो रही हैं।
कुल मिलाकर मैं बस इतना ही कहना चाहता हूं कि हमें स्त्रियों के प्रति अपनी तुच्छ मानसिकता का परित्याग करना चाहिए और स्त्रियों का सम्मान केवल महिला दिवस पर ही नहीं बल्कि जीवनपर्यन्त करना चाहिए। मां, बहन, बेटी, पत्नी आदि रूपों में उसे अधिकार व सम्मान देना चाहिए। और वह सम्मान अंतर्मन से होना चाहिए क्योंकि सम्मान दिखावे की वस्तु नहीं होती है। एक स्वस्थ समाज, स्वस्थ परिवार और प्रगतिशील राष्ट्र के लिए महिला सुरक्षा, उनका विकास, उनके अधिकारों की स्वतंत्रता, सम्मान, और समानता ये बहुत ही आवश्यक तत्व हैं। हमें अपने घर, समाज और देश की सभी स्त्रियों पर गर्व करना चाहिए। उनका सम्मान और उनके अधिकारों का पोषण करते हुए समाज में उन्हें उचित स्थान दिलाने हेतु प्रत्येक क्षण प्रयासरत रहना चाहिए । तभी हमारे महिला दिवस मनाने के संकल्प की पूर्ति और हमारे दायित्व एवं कर्तव्यों का निर्वहन हो सकता है। एक स्त्री शक्ति का प्रतीक है इसके बिना समाज, परिवार या देश का निर्माण संभव नहीं है। महिलाओं के प्रति हमें सम्मान और सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए तथा इस शुभ कार्य की शुरुआत हमें अपने घर ,परिवार व समाज से करनी चाहिए। बच्चियों को शिक्षा एवं विकास के समुचित अवसर उपलब्ध कराने चाहिए बेटों के समान ही बेटियों को भी शिक्षित एवं स्वावलंबी बनने के लिए प्रेरित करते रहना चाहिए। तब कहीं जाकर हमारे महिला दिवस मनाने का उद्देश्य पूर्ण होगा।
“आज भी महिला पुरुष में देखी है विषमताएं महिलाओं के जीवन में है कितनी विडंबनाएं किंतु दिखावे में हमको यह कहना ही पड़ जाता है
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।”
लेखक : अजय एहसास (युवा कवि और लेखक)
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)