प्रकृति में विलय

Shabdrang
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आओ हरी टहनियों

मुझमें उगो

मेरे शरीर में बस जाओ

प्राण की तरह

काली पुतलियों में सफेद रोशनी की तरह

आओ यहां तुम्हें कोई यातना नहीं दे सकेगा

तुम्हारे हिस्से की निर्दोष मिट्टी को

नहीं करेगा पत्थर

तुम्हारे रास्ते में नहीं खड़ी करेगा दीवार

नहीं काटेगी कोई बेरहम कुल्हाड़ी तुम्हारा धड़

तुम्हारी जड़

यहां पर्याप्त रोशनी है तुम्हारे उगने के लिए

धूप में इठलाओ

बारिश में नहाओ

चांदनी रात में जगनुओं के प्रेम में पड़ो

फूलो फलों

गौरैया को घोंसला बनाने के लिए

अपनी हरी पत्तियों की छतरी तान दो

जो जी में आए वो करो

एक दौलतमंद आदमी के इकलौते बच्चे सी बढ़ो

मुझसे यूं हो जाओ एकाकार

कि मेरा वजूद हो जाए हरा

मैं भी बन जाऊं एक हरी टहनी

और हम दोनों बढ़े एक साथ

एक दूसरे को जानते, समझते

-सरस्वती रमेश

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