कवि नत्थूलाल हमनी के पड़ोसी हऊवें। दिन-रात ओनकर कविताई चलत रहत हौ। ऊ गदहा के आवाज में आपन कविता, जब मन करेला सुनावे लागेला। जवना के नतीजा ई होला कि उनकर कविता पाठ सुनला पर मुर्गा के भोर हो गइल होखे के भ्रम हो जाला आ ऊ बांग करे लागेला। मोहल्ला के बहुत लोग अलार्म लगावल बंद क देले बाड़े। नत्थूलाल के कविता पाठ सुन के ऊ लोग नींद से जाग जाला। कबो-कबो लोग आधी रात के भोर समझ बैठेला।
कवि नत्थूलाल के कविता के अतना अपच हो जाला कि जब भी मन करेला त अपना कमरा से बाहर निकल के ओहिजा से गुजरत कवनो लइकी के सुंदरता के बखान करे लागेला। उनकर ई हरकत कबो जूती खियाई देला अउर कबो बूस्टर डोज के काम करेला। ओकरा बूस्टर डोज तब मिलेला जब कवनो सुंदर मेहरारू ओकरा कविता से मंत्रमुग्ध हो जाले आ आँख के कोना से ओकरा के देखत मुस्कुरा के आगे बढ़ जाले, बाकि जब ई कृत्य भाभीजी के दिव्य नजर में आवेला तब बेलन प्रहार शुरू हो जाला। एही से कुछ दिन ले कविता के लय अउरी तुक बदल जाला। चहुँओर शांति ही शांति हो जाला। बाकि जल्दिये उनकर कविता क्रांति लौट आवत हौ।
कवि लोग में इहे सबसे बड़ बेमारी ह। अगर उ लोग आपन कविता ना सुनावे त उ लोग अपच के शिकार हो जाले। अइसना में हमनी के पड़ोसी के रूप में आपन कर्तव्य निभावल ना भुलाएनी जा। बरसात के मौसम में गरम पकौड़ा खाइल पसंद बा। जब हमनी के पकौड़ा खाए के मन करेला त बिना कवनो डर के कवि अउरी पड़ोसी नत्थूलाल के कविखाना पहुंच जानी जा। तुरते भाभीजी के पकौड़ा तल के गरम चाय ले आवे के आदेश दिहल जाला आ हमनी के नत्थूलाल के कविता के आनंद लेबे लागेनी जा। बाकि हम ताली बजावल अउरी वाह-वाह करब ना भुलाएनी। काहे कि सतर्क श्रोता के हमेशा एह बात के ध्यान राखे के चाहीं कि ताली कवि खातिर बूस्टर डोज हौ। एकरा चलते कवि के प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत हो जाला अउरी कवि के भीतर कविता कबो खतम ना होला।
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