मेरे दिल का कोई कमरा तेरे रहने की खोली है,
कहीं रहता मेरा बचपन कहीं बच्चों की टोली है।
मचलते हैं कहीं बूढ़े गुलाबी खुश्बुएं लेकर
मचलता है मेरा मन और कहता आज होली है।
सजे हैं गीत रंगो में सजी है धरती हरियाली,
है लगता गुड़ से मीठा भी जो भाभी आज बोली है,
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डुबोकर हाथ रंगो में करें स्पर्श जब मेरा,
जो कहता छेड़ो न मुझको तो कहती आज होली है।
वो रंगो में रंगे बूढ़े पिये हैं भांग के प्याले,
बुढ़ापे में कहें भउजी, बुजुर्गों की ये बोली है।
गुलाल फेककर ऊपर कभी भइया बड़े कहते,
बुरा मत मानना छुटकी, काहें की आज होली है।
पिया जब से गये बाहर थकी हैं रास्ता तककर,
सिमटकर ऐसे बैठी जैसे कि बैठी वो डोली हैं।
जो देखी प्रेम पिचकारी करें भी क्या थकी हारी,
पड़़ोसी बोल ही बैठा कि भाभी आज होली है।
सभी शृंगार से अच्छा था चेहरे पर लगा जो रंग,
पड़ा सब रंग चेहरे पर लगा जैसे ही धो ली हैं।
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तुरत ही हाथ रंगकर गाल पर रखते हुए बोला,
बुरा मत मानना भाभी मेरी भी आज होली है।
बहुत से दोस्त आये हैं गले मिलने दुआ देने,
मेरे हमदम, मेरे हमराह हैं, हमजोली हैं।
दिलों को खोलकर मिलते समाते एक दूजे में,
कहें की यार अब तो मान जा कि आज होली है।
बना दे दोस्त दुश्मन को दिलों में अपनापन लाये,
गले ऐसे लगा कि देखकर नफरत भी रो ली है।
मिटा दो सब गिले शिकवे डुबो उल्लास रंगो में,
कि बांटो भाई चारा प्यार देखो आज होली है।
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हो चाहें लाल पीला कि हरा चाहें गुलाबी हो,
यही त्योहार जाति धरम खतम करने की गोली है।
हो चाहें हिन्दु या मुस्लिम कोई भी जाति हो लेकिन,
गले मिलते चाचा जुम्मन व हरिया आज होली है।
मजहब छोड़कर भाषा कि छोड़ें जाति की लासा,
कि इसमें सब समाहित हैं ये होली आज बोली है।
हुआ ‘एहसास’ नूरे आसमां भी है उतर आया,
खुशी से भर लो सब झोली और बोलो आज होली है।
अजय एहसास
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)