कविता : महाकुंभ

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महाकुंभ के अमृत जल में
भाव-भक्ति और दर्शन है डूबा
फिर सौंदर्यबोध की कस्तूरी में
चंचल मन जाने यह क्यों डूबा

काया का कलुष मिटाती गंगा
यम से भी लड़ती हैं यमुना माता
जीवन का सार तत्व हैं सरस्वती
संतो की वाणी सा निर्मल है संगम

कुंभ के मुख में बसते हैं श्री विष्णु
ग्रीवा में बिराजते हैं रूद्र अवतार
आधार भाग में बसते हैं ब्रह्मा जी
मध्यभाग में देवियों का निवास

कलुष कर्म की गठरी तू है सिर धारे
तेरा मनवा क्या खोज रहा है प्यारे
भाव-भक्ति और दर्शन को तू छोड़
नश्वर काया के पीछे तू सिरफोड़

त्रिवेणी में झूठी मोक्ष की डुबकी
शांत न होती तेरे मन की फिरकी
संयम खोती संत-असंत की वाणी
मोक्ष के चाहत की तेरी यह नादानी

ज्ञान-वैराग्य की गठरी ना खोली
झूठ का चंदन और अक्षत-रोली
मालावाली बाला की सौ की फेरी
मोना का साया बस तेरी हमजोली

-प्रभुनाथ शुक्ल, भदोही (उत्तर प्रदेश)

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मैं प्रभुनाथ शुक्ला, उत्तर प्रदेश के भदोही जनपद से हूँ। जिसकी पहचान दुनिया में खूबसूरत बेल-बूटेदार कालीन के निर्माण से है। मैं स्वतंत्र पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। समसामयिक विषयों पर लेखन करता हूं। हिंदुस्तान, जनसंदेश टाइम्स, स्वतंत्र भारत अख़बार का मैं काम कर चुका हूं। इस समय मैं देश की बहुभाषी समाचार एजेंसी हिंदुस्तान समाचार का में कार्यरत हूँ। देश के सम्मानित समाचार पत्रों में मेरे आलेख नियमित प्रकाशित होते रहते हैं जनसत्ता,हरिभूमि,दैनिक जागरण, स्वदेश पीपल समाचार ,सुबह सबेरे, दैनिक सबेरा, पंजाब केसरी, दबंग दुनिया समेत अनेक सम्मानित समाचार पत्र और पत्रिकाओं के साथ बेवपोर्टल शामिल हैं। मैं विशेष रूप से राजनीति, महिला, पर्यावरण, सामाजिक मसले बच्चों की कहानियां, बाल कविताएं, कविताएं, व्यंग्य, कटाक्ष और दूसरी विधाओं में लेखन करता हूं। वर्तमान समय में मैं हिंदुस्तान समाचार एजेंसी में कार्यरत हूं। पत्रकारिता में मेरा 20 वर्षों कैरियर है। साहित्य, किताबों को पढ़ना और अच्छे लोगों से संबंध बनाना मेरी पहली प्राथमिकता है। सोशलमीडिया के सभी प्लेटफार्म पर मैं उपलब्ध हूँ। मैं सिर्फ अपने कर्म पर विश्वास करता हूं और दुनिया को नियंत्रित करने वाली अदृश्य शक्ति जिसे मैं ईश्वर कहता हूं उस पर विश्वास करता हूं।
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