शीर्षक – वो

Shabdrang
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वो अपने आप को खोती
अगर वो मेरी प्रेमिका होती
मैं थाम लेता उसका हाथ
जब भी वह होती मेरे साथ ।

इससे पहले कि उसका मन कुछ जान पता
मैं चूम लेता उसका माथा
क्योंकि जब वह मुझे दिल से पुकारती
मन के साथ मस्तिष्क से स्वीकारती ।

मेरा होंठ उसके माथे पर घूमता
मैं माथे के साथ उसके मस्तिष्क को चूमता
उस ईश्वर का धन्यवाद करता
जो इस अद्भुत कृति का कर्ताधर्ता ।

जिसने इस अनमोल सौंदर्य को बनाया
वह भी इसे समझ नहीं पाया
जिसके मस्तिष्क के आगे वह ईश्वर भी हार गया
आज वही मस्तिष्क मुझे स्वीकार गया ।

उस मस्तिष्क पर अपना चुंबन रूपी पुष्प अर्पित करता
तन मन से स्वयं को समर्पित करता
जब उसका माथा चूमने जाता
तो मैं थोड़ा सा झुक जाता ।

उसे कुछ लगता अजीब
मेरा सीना होता उसके कान के करीब
वह सुनती मेरी धड़कनों की गुहार
उसमें भी उसके नाम की पुकार ।

कुछ पल गुजरता उसके प्रेम की छांव
विदाई के वक्त चूमता उसके पांव
क्योंकि उसने मुझे अपने जीवन में शामिल किया
और अपने प्यार के काबिल किया ।

उसने प्रेम की परिभाषा सर्वमान्य कर दिया
एक सामान्य पुरुष को असामान्य कर दिया
ना समझी दुनियादारी छोड़ दी हया
एक पल में मैं उसकी दुनिया हो गया।

किया दुनिया की रीति पर एक भयंकर प्रहार
मुझे अपना प्रेमी बनाकर किया उपकार
जिन पावन चरणों से वह मेरे जीवन में आई
उसे चूमने में कैसी सकुचाई ।

इन पांवों से मुझे लांघना रौदना नहीं, यही कहूंगा
मैं जीवन भर उसके पांव चूमता रहूंगा
वो जेठ की दुपहरी को भी सावन कर देगी
अपने प्रेम से ‘एहसास’ को पावन कर देगी।।

-अजय एहसास
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)

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