मेरा- रावण संवाद

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दशहरा विशेष व्यंग्य

एक दिन दस सिर वाला व्यक्ति हमसे टकरा गया
टकरा क्या गया बातों ही बातों में बहस पर आ गया
हमने कहां श्रीमान
थोड़ा दीजिए ध्यान
आपको देखकर मैं हूं हैरान
दस शीश, आंखें बीस
फिर भी क्या मैं आपको नहीं दिखा लंकाधीश
जवाब मिला- थोड़ा तमीज से बोलो
बोलने से पहले तोलो ।

हम हैं लंकेश
जिससे डर गए थे महेश
तेरी तो औकात ही क्या है तुच्छ मानव
हम तो केवल बदनाम है वास्तव में तू ही है दानव
ओह तो आप ही हैं लंकेश रावन
जिनके विचार बड़े पावन ।

मैंने कहा- एक बात बताइए
मेरी शंका दूर भगाइए
आपके पास है दस मस्तक
शैंपू करने में होती होगी दिक्कत
अगर कभी सिर करें दर्द
तो पता नहीं चलेगा कि कि सिर में है मर्ज ।

रावण बोला- तुम लोग एक ही मुख पर
कितने मुखोटे लगाते हो
कितनों को उल्लू बनाते हो
क्या थक नहीं जाते हो
अरे आप तो सीरियस हो गए
अच्छा यह बताइए
हमने सुना है आपने मचाया था हाहाकार
और आपके अंदर था काफी अहंकार ।

रावण ठहाका मारा
मैंने कहा इसमें हंसने वाली कौन सी बात
क्या मैंने कोई जोक मारा
रावण ने कहा- और नहीं तो क्या
एक कलयुगी इंसान के मुंह से
ये सब सुनकर अच्छा नहीं लगा
तुम लोग एक छोटी मोटी डिग्री क्या ले लिए
दो-चार अक्षर अंग्रेजी क्या सीख लिए
बात ऐसे करते हो
जैसे इस धरती पर तुम ही एक हो समझदार
बाकी सब है गवार ।

और मैंने चारों वेद पढ़ा
उन पर टिप्पणी गढ़ा
चांद की रोशनी से खाना तक पकवा दिया
दुनिया का पहला विमान और
सोने की लंका तक बनवा दिया
इतना सब करके अगर कर लिया थोड़ा घमंड
तो तू क्यों हो रहा इतना प्रचंड
चलो ठीक है बा‌‌‌‌ॅस जस्टिफाई कर दिया आपने
अच्छी तरह समझा दिया आपने ।

लेकिन लोगों को ये क्या तरीका दे गए
गुस्सा आने पर परबीवी को किडनैप कर ले गए
इतना सुनकर रावण सीरियस हो गया
और पड़ गया सोच में
फिर तुरंत ही आया जोश में
और चेहरे पर दिखी एक विचित्र हंसी
और बातों की एक व्यंग उसने मुझ पर कसी
बोला मानता हूं मैंने श्री राम की पत्नी को चुराया
श्री राम जी को बहुत सताया
मैंने किया बहुत बड़ा गलत काम
और भुगता उसका परिणाम
पर प्यारे मेघनाथ की कसम
मैंने कभी उनको हाथ नहीं लगाया
कभी उनकी गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाया ।

और तुम कलयुगी इंसान
बन गए हो हैवान
छोटी-छोटी बच्चियों को नहीं बख्सते
पहले तो करते प्रेम फिर छलावा परसते
अरे तुम दरिंदों में कोई नैतिकता बची है
अपने आपको बचाने का
फिर क्या अधिकार है तुम्हें
मेरे ऊपर उंगली उठाने का ।

मैं कुछ सोचते सोचते थोड़ा सा रुक गया
इस बार मेरा सिर शर्म से झुक गया
पर मैं भी ठहरा पक्का इंसान
बोला- जाओ ,जाओ दशहरा है हम सब संभाल लेंगे
तुम्हारी सारी दबंगई निकाल देंगे
इस बार वह इतनी जोर से हंसा
कि मैं गिरते गिरते बचा
मैंने कहा- यार इतनी जोर-जोर से हंसते हो
दस-दस मुख लेके
कान के पर्दे फाड़ दोगे क्या हंस-हंस के ।

रावण बोला- यार वैसे कमाल हो तुम
शैतानों की मिसाल हो तुम
इसमें कोई शक नहीं कि
विज्ञान ने तरक्की करके किया कन्फ्यूज है
पर कॉमन सेंस के मामले में फ्यूज है
हर साल मेरे पुतले को
जलाकर होते हो खुश
पुतला जब जलने लगता है
मैं तुम्हारे अंदर जाता हूं घुस
वैसे अब तुम लोगों के अंदर मुझे घुटन होने लगा है क्योंकि मैंने जो सोचा न था
आज का इंसान वह करने लगा है
इतनी बेइज्जती के बाद बोलने को कुछ बचा ना था सोचा तो लगा कि रावण ही सच्चा था
आज हम इतने गिर गए
कि हमारी सामाजिकता और
नैतिकता पल भर में बिखर गए।

-अजय एहसास
अम्बेडकर नगर( उ०प्र०)

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