बहन से कलाई पर राखी तो बँधवा ली, 500 रू देकर रक्षा का वचन भी दे डाला। राखी गुजरी, और धागा भी टूट गया, इसी के साथ बहन शब्द का मतलब भी पीछे छूट गया। फिर वही चौराहों पर महफिल सजने लगी, लड़की दिखते ही सीटी फिर बजने लगी… रक्षा बंधन पर आपकी बहन को दिया हुआ वचन, आज सीटियों की आवाज में तब्दील हो गया। रक्षाबंधन का ये पावन त्यौहार, भरे बाजार में आज जलील हो गया… पर जवानी के इस आलम में, एक बात तुम्हें ना याद रही। वो भी तो किसी की बहन होगी जिस पर छीटाकशी तूने करी… बहन तेरी भी है, चौराहे पर भी जाती है, सीटी की आवाज उसके कानों में भी आती है! क्या वो सीटी तुझसे सहन होगी, जिसकी मंजिल तेरी अपनी ही बहन होगी?
अगर जवाब तेरा हाँ है, तो सुन, चौराहे पर तुझे बुलावा है। फिर कैसी राखी, कैसा प्यार सब कुछ बस एक छलावा है… बन्द करो ये नाटक राखी का, जब सोच ही तुम्हारी खोटी है। हर लड़की को इज़्ज़त दो, यही रक्षाबंधन की कसौटी है।