हिंदी दिवस विशेष : शीर्षक – ऐसी हिंदी हमारी है।।

अजय एहसास
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कवियों की लेखनी से बहती झर झर निर्मल प्यारी है
गंगाजल सी पावन देखो ऐसी हिंदी हमारी है।
मां की लोरी, बहन की डांट, और पिता की यारी है
दादी की परियों की कहानी ऐसी हिंदी हमारी है।।

यह तुलसी, कबीर, गौतम ,केशव, भूषण की वाणी है
प्रसाद, पंत, निराला कह गए ऐसी हिंदी हमारी है।
महादेवी जी के गीतों में इस की शोभा न्यारी है
छंद नरोत्तम ने लिख डाले ऐसी हिंदी हमारी है।।

चेतना हिंदी में है और हिंदी में वेदना सारी है
भाव, व्याकरण और आचरण ऐसी हिंदी हमारी है।
हिंदी में स्वागत करते हिंदी वैवाहिक गारी है
वागेश्वरी चरण में अर्पित ऐसी हिंदी हमारी है।।

संगम हिंदी, साधना हिंदी, हिंदी सब पर भारी है
ग़ालिब की गज़लों में दिखती ऐसी हिंदी हमारी है।
सुभद्रा की खूब लड़ी मर्दानी पर सब वारी है
हल्दीघाटी जो लिख डाले ऐसे हिंदी हमारी है।।

हिंदी नदी का मीठा जल बाकी सागर सी खारी है
अमृतमयी भाव रखती जो ऐसी हिंदी हमारी हैं।
बचपन में जै करना सीखें अल्लाह अल्लाह पुकारी है
जनमानस का मेल कराती ऐसी हिंदी हमारी है।।

सुं‌‌दर, सरल, मनोरम, मीठी, ओजस्विनी दुलारी है
कालजयी जो कहलाती है ऐसी हिंदी हमारी है।
संतों की वाणी मीरा के काव्य की ये फुलवारी है
सब भाषा को गले लगाती ऐसी हिंदी हमारी है।।

आदिकाल, आधुनिक हो ये कश्मीर से कन्याकुमारी है
दसों दिशाएं गुंजित इससे ऐसी हिंदी हमारी है।
चले गए अंग्रेज हिंद से अंग्रेजी की बारी है
हिंदुस्तान के दिल में बसती ऐसी हिंदी हमारी है।।

हो फ़कीर, लेखक या सन्त सबने ही यह उच्चारी है
सब भाषा को बहन मानती ऐसी हिंदी हमारी है।
मां का “एहसास” दिलाती ममता प्रेम की ये अधिकारी हैं
बचपन में बोलना सिखाती ऐसी हिंदी हमारी है।।

अजय एहसास

सुलेमपुर परसावां
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)

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युवा कवि और लेखक, अजय एहसास उत्तर प्रदेश राज्य के अम्बेडकर नगर जिले के ग्रामीण क्षेत्र सलेमपुर से संबंधित हैं। यहाँ एक छोटे से गांव में इनका जन्म हुआ, इनकी इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा इनके गृह जनपद के विद्यालयों में हुई तत्पश्चात् साकेत महाविद्यालय अयोध्या फैजाबाद से इन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बचपन से साहित्य में रुचि रखने के कारण स्नातक की पढ़ाई के बाद इन्होंने ढेर सारी साहित्यिक रचनाएँ की जो तमाम पत्र पत्रिकाओं और बेब पोर्टलो पर प्रकाशित हुई। इनकी रचनाएँ बहुत ही सरल और साहित्यिक होती है। इनकी रचनाएँ श्रृंगार, करुण, वीर रस से ओतप्रोत होने के साथ ही प्रेरणादायी एवं सामाजिक सरोकार रखने वाली भी होती है। रचनाओं में हिन्दी और उर्दू भाषा के मिले जुले शब्दों का प्रयोग करते हैं।‘एहसास’ उपनाम से रचना करते है।
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