शीर्षक- बाबू जी (फादर्स डे पर कविता)

अजय एहसास
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फादर्स डे (Father’s Day) स्पेशल कविता : अजय एहसास

बच्चों के संग बच्चा बनकर,
सदा हंसाते बाबू जी ।
बच्चों की इच्छाओं को,
है पूरे करते बाबू जी।
जीवन जीते हैं कैसे,
जब हम दुनिया में आते हैं।
जीवन जीने की परिभाषा,
थे सिखलाते बाबू जी।
हर मुश्किल में बनकर साया,
संग है चलते बाबू जी।
मेरे नन्हें हाथों को,
उंगली का सहारा देते थे।
आज खड़े हम बिना सहारे,
केवल उसे स्पर्श के बल पर।
खुद पारस बनकर थे,
हमको स्वर्ण बनाते बाबू जी
वो खुशियों के लिए हमारे,
अपना सुख थे तज देते।
मेहनत करके सुबह शाम ,
थे हमें पढ़ते बाबू जी।
कभी जो चलते गिर जाते,
हमको उत्साहित करते थे।
श्रम, विश्वास, संस्कारों का,
बीज रोपते बाबू जी।
वो एहसास सुखद था,
उनके जैसा था ना कोई भी।
प्रेम अश्रु आंखों में आता,
जब गले लगाते बाबू जी।।

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युवा कवि और लेखक, अजय एहसास उत्तर प्रदेश राज्य के अम्बेडकर नगर जिले के ग्रामीण क्षेत्र सलेमपुर से संबंधित हैं। यहाँ एक छोटे से गांव में इनका जन्म हुआ, इनकी इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा इनके गृह जनपद के विद्यालयों में हुई तत्पश्चात् साकेत महाविद्यालय अयोध्या फैजाबाद से इन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बचपन से साहित्य में रुचि रखने के कारण स्नातक की पढ़ाई के बाद इन्होंने ढेर सारी साहित्यिक रचनाएँ की जो तमाम पत्र पत्रिकाओं और बेब पोर्टलो पर प्रकाशित हुई। इनकी रचनाएँ बहुत ही सरल और साहित्यिक होती है। इनकी रचनाएँ श्रृंगार, करुण, वीर रस से ओतप्रोत होने के साथ ही प्रेरणादायी एवं सामाजिक सरोकार रखने वाली भी होती है। रचनाओं में हिन्दी और उर्दू भाषा के मिले जुले शब्दों का प्रयोग करते हैं।‘एहसास’ उपनाम से रचना करते है।
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