फादर्स डे (Father’s Day) स्पेशल कविता : अजय एहसास
बच्चों के संग बच्चा बनकर,
सदा हंसाते बाबू जी ।
बच्चों की इच्छाओं को,
है पूरे करते बाबू जी।
जीवन जीते हैं कैसे,
जब हम दुनिया में आते हैं।
जीवन जीने की परिभाषा,
थे सिखलाते बाबू जी।
हर मुश्किल में बनकर साया,
संग है चलते बाबू जी।
मेरे नन्हें हाथों को,
उंगली का सहारा देते थे।
आज खड़े हम बिना सहारे,
केवल उसे स्पर्श के बल पर।
खुद पारस बनकर थे,
हमको स्वर्ण बनाते बाबू जी।
वो खुशियों के लिए हमारे,
अपना सुख थे तज देते।
मेहनत करके सुबह शाम ,
थे हमें पढ़ते बाबू जी।
कभी जो चलते गिर जाते,
हमको उत्साहित करते थे।
श्रम, विश्वास, संस्कारों का,
बीज रोपते बाबू जी।
वो एहसास सुखद था,
उनके जैसा था ना कोई भी।
प्रेम अश्रु आंखों में आता,
जब गले लगाते बाबू जी।।
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