कुछ चिलमचट्टू, कवि निठ्ठल्लेराम को पद्मश्री के साथ साहित्य का नोवेल पुरस्कार भी देने की मांग सरकार से उठाने लगे हैं। एक समीक्षक ने तो उनके कविता संग्रह, निठल्लेराम की मधुशाला, की समीक्षा करते हुए लिख दिया कि भूतो न भविष्यति और वह भी बगैर पढ़े। हमें लगता है उन्हें भी किसी पुरस्कार की आश्यकता है। चुनाव करीब है सो जनता जनार्दन का सच्चा हितैषी बनते हुए मोहल्ले के विधायकजी ने भी निठल्लेराम के लिए पद्मश्री की संस्तुति कर दी है।…फिर तो बोलिए कवि, कविता और जुआड़ू निठल्लेराम की जय।
हमारे मोहल्ले में कवि निठ्ठल्लेराम रहते हैं। सौभाग्य की बात हमारे लिए है या फिर उनके लिए मैं कह नहीं सकता हूँ, लेकिन वे हमारे अजीज पड़ोसी हैं। कोरोनाकाल में बेचारे नयी मुसीबत झेल रहे हैं। कविता की मंचीय जुगाली न कर पाने से उन्हें अपच की बिमारी हो गईं है। लॉकडाउन की वजह से कवि सम्मलेन आयोजित न होने से आयोजक और निठ्ठल्लेराम की जमात के अनगिनत लोग निठ्ठल्ले ठाले में हैं। क्योंकि मुए कोरोना ने धंधा मद्दा कर दिया है। कवि होने की वजह से उन्हें अपच की बिमारी ने कुछ अधिक परेशान कर रखा है। दिन या रात का उन्हें ख्याल ही नहीं रहता है। गर्दभ स्वर में अपना कविता पाठ शुरू कर देते हैं। जिसका नतीजा होता है कि कविता पाठ सुन कर मुर्गे भोर होने का भ्रम पाल बैठते हैं और बांग देना शुरू कर देते हैं। पड़ोस के कई लोग एलार्म लगाना बंद कर दिया है वह निठ्ठल्लेराम के कविता पाठ से अपनी निद्रा को विराम देते हैं। कभी-कभी आधी रात को लोग भोर समझ बैठते हैं।
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निठ्ठल्लेराम पर मुझे कभी-कभी बड़ा तरस आता है। लेकिन नेकदिल पड़ोसी होने के नाते मैं उनकी पीड़ा और अपच की बिमारी समझता हूँ। आखिर लॉकडाउन में बेचारे अपना कविता पाठ कहाँ करने जाएं। कवियों में यह सबसे बड़ी बिमारी होती है। अगर वह अपनी कविता न सुनाएं तो उन्हें अपच की बिमारी हो जाती है। इस हालात में हम अपना पड़ोसी धर्म निभाना नहीं भूलते हैं। बारिश के मौसम में मुझे गरमा गरम पकौड़े निगलना अच्छा लगता है। यह स्थिति और सुखद होती है जब लॉकडाउन चल रहा हो। इस अनुकूल परिस्थिति में जब भी हमें पकौड़े खाने मन करता है तो हम निठ्ठल्लेराम के कविखाने में बेधड़क पहुंच जाते हैं। तत्काल भाभीजी को पकौड़े तलने और गरमा-गरम चाय लाने का आदेश जारी होता है और हम निठ्ठल्लेराम की कविता का आनंद लेना शुरू कर देते हैं। लेकिन वाह-वाह करना नहीं भुलते। क्योंकि एक सजग श्रोता को इस बात का हमेशा ख्याल रखना चाहिए कि वाह-वाह कवि के लिए बूस्टरडोज होता है। इसकी वजह से कवि का इम्युन सिस्टम मजबूत होता है। कविता और कवि की इम्युनिटी कभी खत्म नहीं होती।कविता और कवि कोरोना को भी जीत लेता है और खुद को जिंदा पाता है। उसे कभी ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ती है।
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निठ्ठल्लेराम वैसे भी कोई पुस्तैनी कवि नहीं हैं। वह कोरोना काल के नवाँकुर हैं। जिसकी वजह से उनकी कवितइ कुचाँलें मारती हैं। कोरोना काल में उन्होंने काफी मेहनत की है। इस दौरान स्वयं के निवेश से उनका पहला कविता संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है। लोकार्पण पर उन्होंने अच्छा जलसा भी किया था। कविता लिखने का उन्हें इतना शौक है कि कोई विषयवस्तु अब शीर्षक के लिए बची ही नहीं है। गली मुहल्ले के कई अखबार तो उन्हें कविता श्री की उपाधि दे चुके हैं। तीन महींने की कवितागिरी में अब उनके नाम के आगे बरिष्ठ साहित्यकार जुड़ गया है। कुछ चिलमचट्टू, कवि निठ्ठल्लेराम को पद्मश्री के साथ साहित्य का नोवेल पुरस्कार भी देने की मांग सरकार से उठाने लगे हैं। एक समीक्ष ने तो उनके कविता संग्रह ‘निठल्लेराम की मधुशाला’ की समीक्षा करते हुए लिख दिया कि भूतो न भविष्यति और वह भी बगैर पढ़े। हमें लगता है उन्हें भी किसी पुरस्कार की आश्यकता है। चुनाव करीब है सो जनता जनार्दन का सच्चा हितैषी बनते हुए मोहल्ले के विधायकजी ने भी निठल्लेराम के लिए पद्मश्री की संस्तुति कर दी है।…फिर तो बोलिए कवि, कविता और जुआड़ू निठल्लेराम की जय।
–लेखक : प्रभुनाथ शुक्ल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)