इस नए साल में क्या लिखूं..

अजय एहसास
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इस नए साल में प्यार लिखूं या दर्द लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता
पूजीपतियों का लिखूं मैं धन
या की किसान का कर्ज लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता ।

कंबल विहीन का शीत लिखूं
या गर्म रक्त की प्रीत लिखूं
प्रत्यक्ष दिए जो रीत लिखूं
या सुख स्वप्नों के गीत लिखूं
क्या गृहविहीन छप्पर पे लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता
इस नए साल में प्यार लिखूं या दर्द लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता।

पकती रोटी का भोर लिखूं
भूखे बच्चों का शोर लिखूं
बेमौसम नाचे मोर लिखूं
किस्मत पर किसका जोर लिखूं
लिखा किसने भाग्य गरीबों का
कुछ भी तो समझ नहीं आता
इस नए साल में प्यार लिखूं या दर्द लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता।

आंधी में बिखरे बाल लिखूं
लत लाशों के मैं खयाल लिखूं
विश्वासघात का जाल लिखूं
या सच्चाई का हाल लिखूं
क्या मन के सभी सवाल लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता
इस नए साल में प्यार लिखूं या दर्द लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता ।

क्या मैं बस उनकी बात लिखूं
या आज की ठंडी रात लिखूं
जो मिला था उसका साथ लिखूं
या छोड़ दिया वो हाथ लिखूं
मैं धर्म लिखूं या जात लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता
इस नए साल में प्यार लिखूं या दर्द लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता ।

मैं प्रेममयी आनंद लिखूं
या विरह का करुणा क्रन्द लिखूं
दिल के दरवाजे बंद लिखूं
या भंवरे को मकरंद लिखूं
क्या प्रेम में भीगे छंद लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता
इस नए साल में प्यार लिखूं या दर्द लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता ।

बोलो निर्धन का मान लिखूं
या की निर्बल की जान लिखूं
काले धन का मैं दान लिखूं
पूंजीपतियों की शान लिखूं
कैसे इनकी पहचान लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता
इस नए साल में प्यार लिखूं या दर्द लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता।

जीवन को क्या बेलगाम लिखूं
या बिना काम का काम लिखूं
मशहूर है जो कोई नाम लिखूं
या जश्नों वाली शाम लिखूं
जो लिखूं क्यों इतना आम लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता
इस नए साल में प्यार लिखूं या दर्द लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता ।

आसमान का कोहरा लिखूं
या घाव पुराना गहरा लिखूं
था प्रेम में जो वो पहरा लिखूं
कि किसी के सर का सेहरा लिखूं
या की मुखिया को बहरा लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता
इस नए साल में प्यार लिखूं या दर्द लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता ।

इसको फागुन का रंग लिखूं
या उसको अपने संग लिखूं
पीड़ा जो है हर अंग लिखूं
या प्रेम मोह को भंग लिखो
क्या मन मस्तिष्क में जंग लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता
इस नए साल में प्यार लिखूं या दर्द लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता ।

नव वर्ष में नव का वास लिखूं
इस दिन को कैसे ख़ास लिखूं
ना बदला वो ‘एहसास’ लिखूं
जो दूर है कैसे पास लिखूं
राजा को कैसे दास लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता
इस नए साल में प्यार लिखूं या दर्द लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता।

कर नए साल में नई पहल
फिर कठिन जिंदगी बने सरल
मेहनत ही समस्याओं का हल
हो जाएगा जीवन ये सफल
बलहीन को लिख दूं कैसे सबल
कुछ भी तो समझ नहीं आता
इस नए साल में प्यार लिखूं या दर्द लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता ।
पूजी पतियों का लिखूं मैं धन
या की किसान का कर्ज लिखूं
कुछ भी तो समझ नहीं आता।।

अजय एहसास
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)

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युवा कवि और लेखक, अजय एहसास उत्तर प्रदेश राज्य के अम्बेडकर नगर जिले के ग्रामीण क्षेत्र सलेमपुर से संबंधित हैं। यहाँ एक छोटे से गांव में इनका जन्म हुआ, इनकी इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा इनके गृह जनपद के विद्यालयों में हुई तत्पश्चात् साकेत महाविद्यालय अयोध्या फैजाबाद से इन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बचपन से साहित्य में रुचि रखने के कारण स्नातक की पढ़ाई के बाद इन्होंने ढेर सारी साहित्यिक रचनाएँ की जो तमाम पत्र पत्रिकाओं और बेब पोर्टलो पर प्रकाशित हुई। इनकी रचनाएँ बहुत ही सरल और साहित्यिक होती है। इनकी रचनाएँ श्रृंगार, करुण, वीर रस से ओतप्रोत होने के साथ ही प्रेरणादायी एवं सामाजिक सरोकार रखने वाली भी होती है। रचनाओं में हिन्दी और उर्दू भाषा के मिले जुले शब्दों का प्रयोग करते हैं।‘एहसास’ उपनाम से रचना करते है।
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