जाने वो मनहूस घड़ी
जब उसने ये बात कही
बोली रहना ना गम में
मिलेंगे हम अब अगले जनम में।
कपतें होंठ से उसने कहा
सुन अंखियों से नीर बहा
पल में ऐसा बोल दिया
जहर विरह का घोल दिया
आंखें रहती हैं अब नम में
मिलेंगे हम अब अगले जनम में।
तपती धरा हृदय की मेरी
जल की जिसको आस नहीं
पतझड़ आया है जीवन में
बुझती मेरी प्यास नहीं
हरियाली है अब कम में
मिलेंगे हम अब अगले जनम में।
ना श्रृंगार दिखा उसका
और नयन भी ना मिलने पाये
कहती है यह राह कठिन है
जिस पर हम चले आये
रहिए ना अब ऐसे भरम में
मिलेंगे हम अब अगले जनम में।
प्रथम मिलन की स्मृति वह
जब झगड़ के उसने बोला था
द्रवित किया था मन को मेरे
पत्थर दिल को खोला था
जगह बना ली थी मन में
मिलेंगे हम अब अगले जनम में।
रातों को ख्वाबों में आकर
करती थी स्पर्श मुझे
प्यारी बातें करते-करते
बीत गए दो वर्ष मुझे
ढूंढूं उसको मैं तम में
मिलेंगे हम अब अगले जनम में।
मन की बस इतनी इच्छा थी
कि तुम मेरी हो जाती
मैं तुममें और तू मुझमें
कुछ ऐसे ही खो जाती
हुए नहीं मैं, तुम हम में
मिलेंगे हम अब अगले जनम में ।
नई भोर के साथ सदा
उत्कर्ष हमारा मिलता था
एक ठिठोली से तेरी
ये हृदय का कोपल खिलता था
खुशियां मिल जाती गम में
मिलेंगे हम अब अगले जनम में ।
बात नहीं उस रात की पूछो
नींद भी जैसे भुला गई
आंखों में लेकर आंसू वो
खुद भी मुझको रुला गई
रखती मुझको अपनी कसम में
मिलेंगे हम अब अगले जनम में ।
भले ही तुमसे दूर रहेंगे
फिर भी अपना मानेंगे
कभी जरूरत पड़े जो मेरी
हाथ तेरा हम थामेंगे
लिखेंगे अपने अच्छे करम में
मिलेंगे हम अब अगले जनम में ।
दूर हुए एहसास किया
पर इक दूजे को न भूलेंगे
साथ अगर मिल जाए उसका
सुख दुख साथ में झेलेंगे
दूर हुए हम जग के शरम में
मिलेंगे हम अब अगले जनम में।
–अजय एहसास
सुलेमपुर परसावां
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)