करूं झूठ को स्वीकार ये मुझसे नहीं होगा
सच को करूं धिक्कार ये मुझसे नहीं होगा ।
सिक्कों से तौल दो मुझे या दो रियासतें
कर लूं मैं अहंकार ये मुझसे नहीं होगा ।।
हो गर न सामने से अपनेपन का इशारा
अपना करूं अधिकार ये मुझसे नहीं होगा ।
लेना जो चाहते हैं मुझसे जिंदगी मेरी
करूं उन पे जां निसार ये मुझसे नहीं होगा ।।
वो करता मदद मेरी अब बारी है मेरी
बन जाऊं होशियार ये मुझसे नहीं होगा ।
करता है काम कोई नाम और किसी का
हो जाऊं दावेदार ये मुझसे नहीं होगा।।
बुनियाद में इक ईंट लगाई नहीं मैंने
घर का बनूं हकदार ये मुझसे नहीं होगा ।
ऊपर की कमाई से ऊंचे महल बनाऊं
और खुश करूं परिवार ये मुझसे नहीं होगा।।
मैं आईने सा साफ सदा सामने रहा
करूं पीठ पीछे वार ये मुझसे नहीं होगा।
कहते हैं लोग कर लो मोहब्बत भी किसी से
गर ना मिले विचार ये मुझसे नहीं होगा।।
दौलत हो या शोहरत मिले या ऊंचे ऊंचे पद
भूलूं मैं शिष्टाचार ये मुझसे नहीं होगा ।
अपनाया जिसने भी उसे छोड़ा नहीं मैंने
रिश्तों में हो व्यापार ये मुझसे नहीं होगा ।।
दो बात गुस्से में किसी अपने ने कह दिये
तो मैं करूं टकरार ये मुझसे नहीं होगा ।
मन से हूं माना जिसको करूं दिल से उसे प्यार
छल से करूं इज़हार ये मुझसे नहीं होगा।।
देकर गुलाब हैप्पी वैलेंटाइन बोलूं
छोड़ू मैं संस्कार ये मुझसे नहीं होगा ।
गर है तुझे “एहसास” मेरे प्यार का तो ठीक
जबरन करूं मैं प्यार ये मुझसे नहीं होगा।।
कविता- अजय एहसास
सुलेमपुर परसावां
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)