लौट के फिर क्यों इसी गाँव चला आता है,
छोड़ के शहर इसी गाँव चला आता है।
अब तो इस गाँव से पतझड़ कभी नहीं जाता,
लेकर आँधी वो इसी गाँव चला आता है।
धर्म, मजहब है और जाति का फसाद यहाँ,
वक़्त बेवक्त इसी गाँव चला आता है।
कभी बुलाने पर सुनता नहीं था जो हमको,
हाथ जोड़े वो इसी गाँव चला आता है।
ठंड से भूख से थी मौत की खबर जो छपी,
जाने क्यों वो भी इसी गाँव चला आता है।
देता भाषण है सभाएं है करता रैली वो,
वादे करने वो इसी गाँव चला आता है।
जलते चिरागों को बुझाने का है हमें ‘एहसास ‘
आग लगाने वो इसी गाँव चला आता है।
–अजय एहसास
ग्राम-सुलेमपुर परसावां
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)