शीर्षक- सब कुछ लौटा दो…

अजय एहसास
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हाय कैसी महामारी है आ गई
दूर अपनों से हमको है ये ला गई
छीन ली जिसने बच्चों से मां-बाप को
डॉक्टर ना बचा पाए खुद आपको

क्या करेंगे जो धरती के भगवान हैं
उनमें भी कुछ तो करते ग़लत काम हैं
किस कदर लोभ लालच उन्हें भा गई
हाय कैसी महामारी है आ गई ।

ऐसी मुश्किल घड़ी दीखे कुछ भी नहीं
बनना चाहें खुदा सीखे कुछ भी नहीं
बंद कैसी पड़ी पाठशाला है वो
अंधेरे जीवन में बनती उजाला है जो
ज्ञान रूपी उजाले को क्यों खा गई
हाय कैसी महामारी है आ गई ।

हो नहीं पा रहा खाने का इंतजाम
चार पैसे नहीं बंद है सारे काम
मां तड़पती रही है दवाई के बिन
भाई परदेस में बैठ काटे हैं दिन
कैसी बेकारी परिवार में छा गई
हाय कैसी महामारी है आ गई ।

साथ में जीने मरने की खाई कसम
एक दूजे के बिन जी सकेंगे ना हम
जान जाते जो पति आए हैं दूर से
पत्नी देती है पानी उन्हें दूर से
थाली का खाना लकड़ी से खिसका गई
हाय कैसी महामारी है आ गई।

साया पड़ने ना देता है अब बाप का
पहले कहता था बेटा मैं हूं आपका
दूर मां से भी रहने लगा है वो अब
जानता है वो मां की जरूरत है जब
जिंदा रहने को ये रिश्ते भी खा गई
हाय कैसी महामारी है आ गई ।

रौनकें छिन गई देखो बाजार से
कोई मिलना नहीं चाहे बीमार से
गलियां भी गांव की दिख रही है वीरान
सड़के शहरों की लगने लगी सुनसान
गांव शहरों में मायूसी सी छा गई
हाय कैसी महामारी है आ गई ।

आंखों में आंसू लेकर सड़क पर खड़े
सैकड़ों मील कैसे वो पैदल चले
बोझ सिर पर रखे छाले थे पांव में
फिर भी बैठे न थे वो कहीं छांव में
जिंदगी जाने किस मोड़ पर ला गई
हाय कैसी महामारी है आ गई ।

कैद खुद के घरों में रहे इस तरह
दी गई जेल में हो सजा जिस तरह
घर से बाहर कहीं कोई निकले नहीं
मौत बनकर कहर टूट जाए कहीं
मौत सिर पे सभी के यूं मंडरा गई ।
हाय कैसी महामारी है आ गई ।

गाते फूलों का ना वो मोहल्ला रहा
खेलते बच्चों का ना वो हल्ला रहा
पाठशाला में भी बच्चे ना थे कहीं
खिलखिलाने की आवाज भी अब नहीं
भविष्य बच्चों का क्यों ऐसे बिखरा गई
हाय कैसी महामारी है आ गई ।

उस मोहल्ले की रौनक ना बर्बाद कर
नन्हे मुन्नो की रौनक को आबाद कर
मायूस चेहरे का हटा मुखौटा दो अब
सब का खोया हुआ सब कुछ लौटा दो अब
करके ‘एहसास’ दुनिया ये कतरा गई
हाय कैसी महामारी है आ गई।

अजय एहसास
सुलेमपुर परसावां
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)

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युवा कवि और लेखक, अजय एहसास उत्तर प्रदेश राज्य के अम्बेडकर नगर जिले के ग्रामीण क्षेत्र सलेमपुर से संबंधित हैं। यहाँ एक छोटे से गांव में इनका जन्म हुआ, इनकी इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा इनके गृह जनपद के विद्यालयों में हुई तत्पश्चात् साकेत महाविद्यालय अयोध्या फैजाबाद से इन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बचपन से साहित्य में रुचि रखने के कारण स्नातक की पढ़ाई के बाद इन्होंने ढेर सारी साहित्यिक रचनाएँ की जो तमाम पत्र पत्रिकाओं और बेब पोर्टलो पर प्रकाशित हुई। इनकी रचनाएँ बहुत ही सरल और साहित्यिक होती है। इनकी रचनाएँ श्रृंगार, करुण, वीर रस से ओतप्रोत होने के साथ ही प्रेरणादायी एवं सामाजिक सरोकार रखने वाली भी होती है। रचनाओं में हिन्दी और उर्दू भाषा के मिले जुले शब्दों का प्रयोग करते हैं।‘एहसास’ उपनाम से रचना करते है।
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