8 मार्च, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर अजय एहसास द्वारा विशेष कविता…
दया प्रेम ममता की मूरत
तेरी अजब कहानी है
त्याग करें और कष्ट में रहे
फिर भी मधुरी बानी है ।
वात्सल्य से ओतप्रोत
है करुण ह्रृदय और निश्चल मन
हंसी सदा रहती होठों पर,
पर आंखों में पानी है।
मां ,पत्नी, बेटी बनकर
अपना कर्तव्य निभाया है
भाई के आंसू पोछे पर
अपना नीर बहाया है ।
कभी प्रेयसी बन कदमों को
किसी के तूने संभाला है
बच्चों की परवरिश को
हर परिस्थिति में ढाला है।
आंचल में जीवन रस जिसके
खुद पीती विष का प्याला
फर्श से अर्श पर ले जाकर
गूथे परिवारों की माला ।
मर्यादा के आभूषण से
जो खुद का देह सजाती है
संस्कार के वस्त्र पहन
इस सृष्टि से नेह लगाती है ।
नारी है अबला बोलो
किसने दी है ये परिभाषा
जीवन देने वाली
जीवन में संचार करें आशा ।
जीवन का आधार हमेशा
यह नारी ही होती है
त्याग करें अपने सुख का
जो घर परिवार संजोती है ।
मातृ शक्ति बनकर सिर पर
जो हाथ रखे वह माता है
और पिता की उलझन
सुलझाना बेटी को आता है ।
गुस्से में भी प्यार दिखाएं
बहनें ऐसी होती हैं
और पति की खातिर पत्नी
अपना सब कुछ खोती है ।
खेल के मैदानों में
सीमा पर सैनिक की टोली है
घर-घर खुशियों के रंग भरे
वो रंगभरी सी होली है ।
पहचान नहीं दबने देना
दे देना अपनी अमिट छाप
बेबस लाचार हो दीनहीन
यह कभी नहीं करना विलाप ।
नारी नवयुग की निर्माता
हर बाधा उससे हारी है
घर हो समाज या देश में हो
सम्मान की वह अधिकारी है ।
यह सृष्टि नारी से ही है
नारी ना है इस सृष्टि से
इस पुरुष प्रधान जगत में सब
क्यों देखते हैं कुदृष्टि से ।
यह रूढ़ि विवशता और बंधन
इस पर क्यों इतनी बंदिश है
नारी भी है नर के जैसी
उसकी भी तो कुछ ख्वाहिश है ।
कुछ पल के लिए स्वयं को
उसकी जगह पर रख “एहसास” करो
घुटने टेकेगी सहनशक्ति
बस उसके जैसे वास करो ।
इस सृष्टि में हर नारी का
हम सब मिलकर सम्मान करें
जिस रूप में भी हमको वो मिले
हम सब उस पर अभिमान करें ।
चुप्पी तोड़ेगी जब नारी
हर क्षेत्र में आगे जाएगी
निर्माण प्रगति पथ का करके
हम सबका मान बढ़ाएगी।
–अजय एहसास
अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)