शीर्षक – रावण का चरित्र

shabdrang
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ज्ञान का ज्ञाता रावण था
ज्ञानी महा कहलाता था
परम भक्त था महादेव का
ज्ञानियों में ज्ञानी निराला था

सच्चे दिल पवित्र मन से
सीता जी को जो मानता था
अनहोनी घटना को भी
जो देख भविष्य बताता था
ज्ञान का ज्ञाता रावण था
ज्ञानी महा कहलाता था

रावण का पुतला फूंक के तुम
हासिल भी क्या कर पाते हो
खुद भी तो राम जैसे हो नहीं
दोषी रावण को बताते हो
क्या रावण मरा नहीं अब तक
रावण का पुतला जलाते हो
रावण इतना भी बुरा नहीं
जितना तुम सब बतलाते हो

रावण था पुत्र “विश्रवा”का
पौत्र “पुलस्त्य मुनि”का था
माता “कैकसी”थीं जिनकी
दशानन वह कहलाता था

गलती थी इक ऐसी उसकी
जो सीता का वो हरण
और वीरता में अपने खोकर
खुद अहंकार का वरण किया

इक ही गलती को उसके
हर साल वही दोहराते हो
शोध करने की जो स्वयं में
इच्छा खूब जताता था
संलग्न अपने धर्म में रहकर
तप को भी निपटाया था
कठोर तपस्या से अपने
ब्रह्मा से वर वो पाया था
और लंकापति कहलाया था

जो भगिनी की लाज बचाया था
वो ज्ञान का ज्ञाता रावण था
ज्ञानी महा कहलाता था

था वेद–पुराणों का ज्ञाता
शिव–स्त्रोत भी लिख डाला
सोने की लंका में रहने वाला
लंकापति कहलाता था

जिस गांव में पैदा हुआ था
वह वहां पर पूजा जाता है

रावण नाम बुरा नहीं
शिव ने ही उसे पुकारा था
अन्त समय में वो अपने
शत्रु को ज्ञान उच्चारा था।।

Mohd Sahil

मो० साहिल

रामराजी इण्टर कालेज
नरायनपुर प्रीतमपुर हीरापुर अम्बेडकर नगर

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